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दुनिया की सबसे रहस्यमयी और खतरनाक जनजाति: कौन हैं बाहरी दुनिया से कटे रहने वाले सेंटिनली? जानें अंडमान द्वीप समूह के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड के निवासियों का सच

दुनिया की सबसे रहस्यमयी और खतरनाक जनजाति: कौन हैं बाहरी दुनिया से कटे रहने वाले सेंटिनली? जानें अंडमान द्वीप समूह के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड के निवासियों का सच
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सेंटिनली (Sentinelese) जनजाति अंडमान द्वीप समूह के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर रहती है और बाहरी दुनिया से लगभग पूरी तरह कटी हुई है। उन्हें अक्सर 'सबसे खतरनाक' कहा जाता है, लेकिन सच्चाई क्या है? जानें उनके इतिहास, जीवनशैली, बाहरी संपर्क के प्रयासों और भारत सरकार की 'नो-कॉन्टैक्ट' नीति के बारे में सब कुछ।

The World's Most Mysterious and Dangerous 'Sentinelese Tribe': दुनिया में आज भी कुछ ऐसी जनजाति है, जो आधुनिक दुनिया से पूर्णतया अनिभज्ञ है। इनमें से एक है सेंटिनली जनजाति, जिसे दुनिया की सबसे खतरनाक जनजाति माना गया है। अंडमान द्वीप समूह के नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर रहने वाली सेंटिनली जनजाति पर भारत सरकार 'निगरानी रखें, पर संपर्क न करें' (Eyes-on, Hands-off) की नीति अपनाती है। हाल ही में एक अमेरिकन युवक इस जनजाति के एरिया में घुसने और इनसे संपर्क के प्रयास में गिरफ्तार हुआ है। पर ऐसा क्या है कि इस जनजाति से न कोई मिल सकता है और न ही इसके पास जा सकता है, आइये जानते हैं इस सेंटिनली जनजाति के बारे में सब कुछ...

कौन हैं सेंटिनली जनजाति?

हिंद महासागर में स्थित भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के एक छोटे से द्वीप, नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड पर सेंटिनली जनजाति का निवास है। इन्हें दुनिया की सबसे अलग-थलग रहने वाली और 'असंपर्कित' (Uncontacted) जनजातियों में से एक माना जाता है। अनुमान है कि ये लोग पिछले लगभग 60,000 वर्षों से बाहरी दुनिया से लगभग बिना किसी संपर्क के इसी द्वीप पर रह रहे हैं। आनुवंशिक रूप से इन्हें 'नेग्रिटो' समूह का माना जाता है, जो अंडमान की अन्य जनजातियों जैसे ओंगे, जारवा और ग्रेट अंडमानीज से संबंधित हैं, लेकिन इनकी भाषा और संस्कृति पूरी तरह से विशिष्ट और रहस्यमयी बनी हुई है।

जीवनशैली: एक अनसुलझा रहस्य

चूंकि सेंटिनली लोग बाहरी संपर्क को पूरी तरह से नकारते हैं, उनकी जीवनशैली, सामाजिक संरचना, भाषा और धार्मिक मान्यताओं के बारे में बहुत कम पुख्ता जानकारी उपलब्ध है। उपलब्ध सीमित अवलोकनों और दूर से ली गई तस्वीरों के आधार पर, यह माना जाता है कि वे आज भी पाषाण युग की तरह एक शिकारी-संग्राहक (Hunter-Gatherer) जीवन जीते हैं। वे शिकार करने और अपनी रक्षा के लिए धनुष-बाण का उपयोग करते हैं। उनकी नौकाएं (संभवतः डोंगी) संकरी और कम गहरी होती हैं, जिनका उपयोग वे लैगून के आसपास मछली पकड़ने या अन्य समुद्री संसाधनों को इकट्ठा करने के लिए करते हैं। आग का उपयोग करना वे जानते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे आग पैदा करना जानते हैं या प्राकृतिक रूप से लगी आग को सहेज कर रखते हैं। उनकी अनुमानित जनसंख्या कुछ दर्जन से लेकर सौ-डेढ़ सौ के बीच मानी जाती है, लेकिन सटीक आंकड़ा अज्ञात है।

बाहरी दुनिया से संपर्क के प्रयास और टकराव

इतिहास में जब भी बाहरी दुनिया ने सेंटिनली लोगों से संपर्क करने का प्रयास किया है, तो उनका रवैया लगभग हमेशा शत्रुतापूर्ण रहा है।

ब्रिटिश काल: 19वीं सदी के अंत में, ब्रिटिश नौसेना अधिकारी मौरिस विडाल पोर्टमैन ने द्वीप का दौरा किया और कुछ सेंटिनली लोगों (एक बुजुर्ग दंपत्ति और बच्चों) का अपहरण कर पोर्ट ब्लेयर ले गए। बुजुर्ग दंपत्ति की जल्द ही बीमारी से मृत्यु हो गई, जिसके बाद बच्चों को उपहारों के साथ द्वीप पर वापस छोड़ दिया गया। इस घटना ने संभवतः बाहरी लोगों के प्रति उनके अविश्वास को और गहरा किया।

भारतीय प्रयास: आजादी के बाद, भारत सरकार ने मानवविज्ञानी टी.एन. पंडित के नेतृत्व में कई बार संपर्क स्थापित करने के प्रयास किए। 1990 के दशक की शुरुआत में कुछ अवसरों पर सेंटिनली लोगों ने नारियल जैसे उपहार स्वीकार किए, लेकिन अक्सर वे तीरों से ही स्वागत करते थे। अंततः, इन संपर्क मिशनों को उनकी अनिच्छा और संभावित खतरों (बीमारियों के फैलने का डर) को देखते हुए बंद कर दिया गया।

सुनामी और हालिया घटनाएं: 2004 की सुनामी के बाद जब भारतीय तटरक्षक बल ने हेलीकॉप्टर से द्वीप का सर्वेक्षण किया, तो सेंटिनली लोगों ने उस पर तीर चलाकर अपने जीवित होने का संकेत दिया। 2006 में, दो भारतीय मछुआरे अवैध रूप से द्वीप के करीब जाने पर उनके द्वारा मारे गए। 2018 में, एक अमेरिकी मिशनरी, जॉन एलन चाऊ, अवैध रूप से द्वीप पर ईसाई धर्म का प्रचार करने गए और सेंटिनली लोगों द्वारा मारे गए।

क्यों कहा जाता है 'खतरनाक'?

बाहरी लोगों पर तीरों से हमला करने की घटनाओं के कारण सेंटिनली लोगों को अक्सर 'दुनिया की सबसे खतरनाक जनजाति' कह दिया जाता है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि उनका यह व्यवहार आक्रामकता के बजाय आत्मरक्षा का एक तरीका है। हजारों वर्षों से अलगाव में रहने के कारण, उन्हें बाहरी बीमारियों (जैसे फ्लू, खसरा) से कोई प्रतिरक्षा प्राप्त नहीं है, जो उनके लिए घातक साबित हो सकती हैं। बाहरी दुनिया से हुए नकारात्मक अनुभव (जैसे ब्रिटिश काल का अपहरण) और अपनी संस्कृति व जीवनशैली को बचाने की इच्छा भी उनके इस शत्रुतापूर्ण व्यवहार का कारण हो सकती है।

भारत सरकार की 'नो-कॉन्टैक्ट' नीति

इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार सेंटिनली जनजाति के प्रति 'निगरानी रखें, पर संपर्क न करें' (Eyes-on, Hands-off) की नीति अपनाती है। कानून द्वारा नॉर्थ सेंटिनल आइलैंड के चारों ओर 5 नॉटिकल मील (लगभग 9.3 किलोमीटर) के क्षेत्र में किसी भी प्रकार का प्रवेश वर्जित है। इस नीति का उद्देश्य दोहरा है: पहला, सेंटिनली लोगों को बाहरी हस्तक्षेप और घातक बीमारियों से बचाना, और दूसरा, बाहरी लोगों को उनके संभावित हमलों से सुरक्षित रखना। सरकार उनके अकेले रहने के अधिकार का सम्मान करती है।

सेंटिनली जनजाति आधुनिक दुनिया में मानव इतिहास और अनुकूलन क्षमता का एक अनूठा उदाहरण है। उन्हें 'खतरनाक' समझने के बजाय, उनके अलगाव के अधिकार का सम्मान करना और उन्हें बाहरी दुनिया के खतरों से बचाना महत्वपूर्ण है। वे न केवल अंडमान की समृद्ध आदिवासी विरासत का हिस्सा हैं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक अनसुलझा रहस्य भी हैं।

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