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पाकिस्तानी कैद से लौटे BSF जवान पूर्णम शॉ: DGMO स्तर की वार्ता के बाद 20 दिन बाद अटारी-वाघा से भारत वापसी, मेडिकल जांच जारी

पाकिस्तानी कैद से लौटे BSF जवान पूर्णम शॉ: DGMO स्तर की वार्ता के बाद 20 दिन बाद अटारी-वाघा से भारत वापसी, मेडिकल जांच जारी
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पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा 20 दिन पहले पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में गलती से सीमा पार करने के बाद हिरासत में लिए गए सीमा सुरक्षा बल (BSF) के कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ बुधवार सुबह भारत लौट आए। डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (DGMO) स्तर की सफल वार्ता के बाद उनकी रिहाई संभव हुई। अटारी-वाघा सीमा पर पहुंचने के बाद उन्हें मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया है।

BSF जवान पूर्णम शॉ की सकुशल वतन वापसी: पाकिस्तान में 20 दिनों तक बंधक रहे सीमा सुरक्षा बल (BSF) के कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ की आखिरकार बुधवार, 14 मई, 2025 को सुबह करीब 10:30 बजे सकुशल वतन वापसी हो गई। उनकी यह वापसी पंजाब स्थित अटारी-वाघा अंतरराष्ट्रीय सीमा के रास्ते हुई। BSF द्वारा जारी एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (DGMO) स्तर पर हुई कई दौर की गहन बातचीत के बाद पाकिस्तान रेंजर्स ने कांस्टेबल शॉ को भारतीय अधिकारियों को सौंपा। भारत पहुंचने के तुरंत बाद पूर्णम शॉ को विस्तृत मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया है। इसके उपरांत उनसे नियमानुसार पूछताछ की जाएगी और फिर उन्हें उनके परिवार के पास भेज दिया जाएगा।

कैसे पाकिस्तान पहुंचे थे जवान पूर्णम शॉ?

कांस्टेबल पूर्णम कुमार शॉ, जो मूल रूप से पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के रिसड़ा गांव के निवासी हैं, 23 अप्रैल, 2025 को पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में एक ऑपरेशनल ड्यूटी के दौरान अनजाने में पाकिस्तानी सीमा में चले गए थे। BSF के अनुसार, घटना के दिन सुबह, शॉ ममदोट सेक्टर में भारत-पाक सीमा पर लगी फेंसिंग के गेट नंबर-208/1 के पास जीरो लाइन पर किसानों की सुरक्षा में अपनी बटालियन (24वीं बटालियन, जो श्रीनगर से स्थानांतरित हुई थी) के साथ तैनात थे। इसी दौरान उनकी तबीयत कुछ नासाज हुई और वह आराम करने के लिए पास ही स्थित एक पेड़ के नीचे बैठने के लिए चले गए। दुर्भाग्यवश, वह पेड़ अनजाने में पाकिस्तानी क्षेत्र में था। तभी पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें घेरकर हिरासत में ले लिया और उनके हथियार भी अपने कब्जे में ले लिए थे।

रिहाई के लिए भारत के अथक प्रयास

कांस्टेबल शॉ के पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा पकड़े जाने की सूचना मिलते ही BSF के वरिष्ठ अधिकारी तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे थे। उन्होंने पाकिस्तानी समकक्षों से बातचीत कर स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास किया और बताया कि जवान नया होने के कारण और जीरो लाइन की सटीक जानकारी न होने के अभाव में गलती से सीमा पार कर गया था। उसे मानवीय आधार पर रिहा करने का अनुरोध किया गया, परंतु पाकिस्तानी रेंजर्स ने प्रारंभिक तौर पर इससे इनकार कर दिया था। इसके बाद जवान की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए दोनों पक्षों के बीच 2 से 3 फ्लैग मीटिंग भी आयोजित की गईं, लेकिन उनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए BSF के महानिदेशक (DG) दलजीत सिंह चौधरी ने केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन से भी इस विषय पर हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था।

गर्भवती पत्नी का फिरोजपुर आगमन

अपने पति के पाकिस्तानी कैद में होने की खबर से कांस्टेबल पूर्णम शॉ का परिवार गहरे सदमे और चिंता में था। उनकी गर्भवती पत्नी, रजनी, 28 अप्रैल को अपने पति की रिहाई की गुहार लगाने पश्चिम बंगाल से फिरोजपुर पहुंची थीं। उन्होंने यहां BSF के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात कर स्थिति की जानकारी ली और अपने पति की जल्द से जल्द सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना की। वह लगभग दो दिन फिरोजपुर में रुकीं, लेकिन बाद में उनकी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति के कारण उन्हें वापस उनके गृहनगर भेज दिया गया था।

पहलगाम हमले के बाद बदले हालात और स्थापित प्रोटोकॉल

आमतौर पर, यदि कोई जवान गलती से सीमा पार कर जाता है, तो एक स्थापित प्रोटोकॉल के तहत फ्लैग मीटिंग के बाद 24 घंटे के भीतर उसे उसके देश को लौटा दिया जाता है। लेकिन कांस्टेबल पूर्णम शॉ का मामला विशेष परिस्थितियों के कारण लंबा खिंच गया। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले के ठीक अगले ही दिन (23 अप्रैल) जवान शॉ के पाकिस्तानी हिरासत में जाने से स्थिति अत्यंत संवेदनशील हो गई थी। इस घटना के बाद पाकिस्तान रेंजर्स ने कांस्टेबल शॉ की दो तस्वीरें भी जारी की थीं; एक तस्वीर में वह एक पेड़ के नीचे अपने सामान के साथ खड़े दिख रहे थे, जबकि दूसरी तस्वीर में उनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। इन बदले हुए सुरक्षा परिदृश्यों और दोनों देशों के बीच बढ़े तनाव के कारण उनकी रिहाई में अप्रत्याशित रूप से विलंब हुआ।

जीरो लाइन क्या है और इसका महत्व?

'जीरो लाइन' अंतरराष्ट्रीय सीमा का वह अत्यंत संवेदनशील हिस्सा होता है, जहां दो देशों की वास्तविक सीमाएं एक-दूसरे के बेहद निकट होती हैं या सटी होती हैं। भारत-पाकिस्तान सीमा पर कई ऐसे जीरो लाइन क्षेत्र हैं, जहां किसानों को सीमित समय और विशेष सुरक्षा परिस्थितियों में खेती करने की अनुमति दी जाती है। इन किसानों की सुरक्षा के लिए सीमा सुरक्षा बल के जवान तैनात रहते हैं, जिन्हें कई बार 'किसान गार्ड' भी कहा जाता है। इन क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की अनजाने में हुई चूक गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकती है।

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